Monday 16 December 2013

                                  माँ  मैं जल्दी आ जाउंगी ! 

16 DEC 2012,  

वो जागृती थी, या ज्योति थी ?

निर्भया उसका नाम था या दामिनी उसका काम ?



वो दिल्ली कि निडर बेटी जिसे कोई खबर नहीं थी कि  आने वाले  पल उसके जीवन के सबसे खतरनाक पल साबित होने वाले हैं .

उन पलों ने , न सिर्फ भारत पर पूरी दुनिया के आगे कुछ  ऐसा पेश किया जिससे हर इंसान कि रूह तड़प उठी।

एक माँ जो घर में आस लगाए बैठी थी , कि कब मेरी बेटी घर लौटेगी और कब मैं उसे अपने हाथों से खाना खिलाऊँगी पर जब खबर आई तो उसके  पैरों तले ज़मीं न रही।

वो एक ऐसी घटना जिसने पुरे देश के आगे एक ऐसा उदाहरण रखा, जिसने साबित कर दिया कि ये देश आज भी कितना खोखला  है कि अपनी बेटी कि रक्षा न कर सका।

१६ दिसंबर  २०१२ को हुआ  हादसा जो  खुद में ही एक गवाह था पर फिर भी गवाह ढूंढ़ते -ढूंढ़ते ६ महीने  निकल गए, जिसमे न जाने और कितनी ज्योति, और कितनी निर्भया और कितनी दामिनी  के साथ इतिहास बार- बार दोहराया।

ये राजनीती के खेल में , हरे कागज़ो के नशे ने , इस  देश को इतना अँधा बना दिया कि एक व्यक्ति का मान-सम्मान  खोता ही चला गया।

उम्मीद शब्द  का भारत सरकार, भारत के सुरक्षा कर्मियों से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है।

हर नागरिक को खुद ही अपनी सुरक्षा का जिम्मा उठाना पड़ेगा।



क्योंकि भगवन भी उनकी मदद करता है जो खुद कि मदद करता है।
God Help Those,Who help themselves.

सुरक्षित रहो , सशक्त बनो, अपने रक्षक बनो.
Be Safe, Be Strong, Be your Protector.



http://iamnirbhaya.me/reports/?c=27

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